Sunday, August 12, 2018

माज़ी में डूबा हुआ....


किसकी तलाश में खोया हुआ है कोई,
किसकी आस में जगा हुआ है कोई,
ढूँढती है नज़र किस हक़ीक़त को,
यहाँ अपनी माज़ी में डूबा हुआ है कोई।

उसकी मंज़िलों की कहाँ राह होगी,
जाने किस शज़र के तले छाँव होगी,
सफ़र कितना ख़ुशनुमा होगा क्या पता,
अज़ीब सी कश्मकस में उलझा हुआ है कोई।

उसे महलों की तमन्ना क्या होगी,
उसे फूलों की तमन्ना क्या होगी,
चाँदी के बरतनों में खाने वाले क्या जाने,
यहाँ काँटों पे सोया हुआ है कोई।


~वीर भद्र सांकृत्यायन

Wednesday, May 9, 2018

Tuesday, April 3, 2018

क्यूँ लोग ?

क्यूँ आजकल लोग ठोकरों से हार जाते है,
क्यूँ मंज़िल से पहले लोग डगमगा जाते है,
मिलती नहीं है मनचाही राह जिन्हें,
क्यूँ वो लोग अनजाने राहों पे घबरा जाते है,

तू अडिग तो रह अपनी कोशिशों में,
क्यूँ अपनी कोशिशों पे लोगों को संदेह हो जाते है।

ज़माने की बातों से होगा विचलित मन तेरा,
उम्मीदों के निगाहों पे लगेगा यहाँ पहरा,
बस उस पहरेदार निग़ाह के आगे ही तो बढ़ना है,
क्यूँ अपनी उम्मीदों को फ़िर लोग दबा जाते है,

ख़्वाहिश किया है अगर मुमकिन करने की हर कोशिश,
क्यूँ अपने ख़्वाहिशों को फ़िर लोग भूल जाते है।

रोकेंगे हज़ार हाथ तुझे आगे बढ़ने से,
नए नए ख़्वाब दिखाएंगे लोग बातों से,
आज भी कुछ हाथ नज़र आएंगे संभालने को,
क्यूँ उन हाथों को छोड़ आप बिखर जाते है।


~√€€π

Monday, March 12, 2018

वक़्त भी कितना अजीब सा लगता है



एक पल में दुनिया आपके संग मुस्कुराएगी आपके ख़ुशी में,
अगले ही पल अलग नज़र आएगी आपके दुख में,

एक पल में लोगो के फ़रिश्ते होंगे उनके ज़रूरत में,
अगले ही पल अलग नज़र आते है वो आपके ज़रूरत में,

कितना अजीब है ना ये वक़्त भी ,
कभी ठहरता ही नहीं है ,
बस चलता जाता है अपने ही धुन में,
हाँ पर धुन आपकी हुई तो आप होंगे आसमान में,

कब तक साथ दोगे वीर दुनिया के झूठी हँसी में ,
खुश रहना सिख लो बस तुम अपने जहाँ में।



~वीर भद्र सांकृत्यायन
11-02-2018