किसकी तलाश में खोया हुआ है कोई,
किसकी आस में जगा हुआ है कोई,
ढूँढती है नज़र किस हक़ीक़त को,
यहाँ अपनी माज़ी में डूबा हुआ है कोई।
उसकी मंज़िलों की कहाँ राह होगी,
जाने किस शज़र के तले छाँव होगी,
सफ़र कितना ख़ुशनुमा होगा क्या पता,
अज़ीब सी कश्मकस में उलझा हुआ है कोई।
उसे महलों की तमन्ना क्या होगी,
उसे फूलों की तमन्ना क्या होगी,
चाँदी के बरतनों में खाने वाले क्या जाने,
यहाँ काँटों पे सोया हुआ है कोई।
~वीर भद्र सांकृत्यायन
Mazi matlab apni duniya ?
ReplyDeleteAtit/past
DeleteBaki mast h bhai...
ReplyDeleteThank you..
DeleteBht badhya yar... Reality of life.. 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
ReplyDeletethank you....
Deleteshandar bhaiya..
ReplyDeletethank you...
DeleteGood ladke
ReplyDeletethank you...
DeleteBahut badhiyan
ReplyDeleteThank you...
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