Tuesday, November 7, 2017

सब कुछ तय है

सब कुछ तय है



किनारे पे जाना भी तय है,
खुद को बहाना भी तय है,
मुक्कमल होगी हर कोशिश ,
नौके का ठिकाना भी तय है।

कोई आएगा रोकने को,
कोई मिलेगा टोकने को,
ये दस्तूर है जहाँ के होंगे ही,
वक़्त का इसे हटाना भी तय है।

कभी अंधेरा कभी उजाला होगा,
आशियाना कुछ सजाना होगा,
दीप जलाओगे जो अँधेरे में तुम,
उसका रात को बुझना भी तय है।


२७~०५~२०१७
~वीर भद्र सांकृत्यायन

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